tag:blogger.com,1999:blog-9062080604766748222024-02-08T03:23:05.027+05:30राजतन्त्रराजकुमार ग्वालानीhttp://www.blogger.com/profile/08102718491295871717noreply@blogger.comBlogger927125tag:blogger.com,1999:blog-906208060476674822.post-6566935110668698422013-03-25T13:47:00.002+05:302013-03-25T13:47:28.945+05:30<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span class="userContent"><span style="color: red;"><span style="font-size: large;">जगन्नाथपुरी में भगवान के दर्शन के लिए पैसों की लूट </span></span><br /> <br />
बड़े अरमानों के साथ पहली बार हम भी जगन्नाथपुरी में भगवान जगन्नाथ के
दर्शन करने पहुंचे थे। लेकिन वहां पहुंचने के बाद वहां का जो नजारा दिखा,
उसने एक बार फिर से साबित कर दिया कि अपने देश में <span class="text_exposed_show">आस्था
के नाम की किस कदर लूट मची हुई है। भगवान के दर्शन करने हैं तो ऐसा करना
किसी गरीब के बस की बात नहीं है। पुरी में मंदिर परिसर में प्रवेश करने से
पहले ही एक नहीं कई पंडे आपके पीछे पड़ जाते हैं। कोई कहता है कि पूजा करा
देगा, कोई कहता है भगवान के दर्शन करा देगा। कोई प्रसाद दिलाने की बात कहता
है तो कोई और काई बात कहता है। कई स्थानों पर रास्ते में दो लकड़ियां पकड़े
एक पंडा पीठा थपथपता है और सीधे दस रुपए की मांग करता है। कोई फूल तो कोई
और कुछ ले जाने की बात कहता है। अगर आप सावधान नहीं है तो यह मानकर चलिए कि
मंदिर परिसर में ही आपकी जेब से न जाने कितने पैसे निकल जाएंगे। जगन्नाथ
भगवान मंदिर के दरबार में पहुंचने पर मालूम पड़ता है कि दस से बारह बजे तक
भगवान को आराम देने के नाम पर खुलेआम धंधा किया जाता है। कहने को भगवान
आराम कर रहे हैं, पर पंडे सीधे-सीधे परिसर में खड़े लोगों से सौदा करते है
कि एक आदमी के 50 रुपए लगेंगे आपको अंदर से दर्शन करवा दिए जाएंगे। कई लोग
पैसे देकर दर्शन करने चले जाते हैं। इसी के साथ 25 रुपए की टिकट पर भी लाइन
लगाकर दर्शन कराए जाते हैं। <br /> हमें पैसे देकर भगवान के दर्शन करना ठीक
नहीं लगा। हमारी कुछ पंडों से बहस भी हुई कि कैसे वे लोग भगवान के दर्शन के
नाम पर आम लोगों को लुटने का काम कर रहे हैं। पर पंडों को कोई असर नहीं हो
रहा था, वे तो बेशर्मी से कह रहे थे कि दर्शन करने हैं तो पैसे दें। खैर
जब 12 बजे के बाद जगन्नााथ भगवान के कपाट खुले तो हमें यह देखकर गुस्सा आया
कि पंडों ने यहां भी सौदा करना नहीं छोड़ा। भगवान के अंतिम दरवाजे पर एक
बड़ा सा आधा पर्दा लगा दिया गया था कि ताकि भगवान के किसी को दूर से पूरे
दर्शन न हो सके और लोग मजबूरी में पैसे देकर अंतिम दरवाजे से दर्शन करने
आए। <br /> सोचने वाली बात है कि आखिर अपने देश के ऐसे बड़े मंदिरों में क्या
हो रहा है और क्यों कर शासन और प्रशासन आंखें बंद करके बैठा है। क्या अपने
देश में भगवान के दर्शन करने के लिए पैसों का होना जरूरी है? क्या यह
इतिहास की उसी बात तो साबित नहीं करता जिसमें छोटी जाति वालों को मंदिर में
आना मना रहता है। आज मंदिर में आना मना ना सही, लेकिन एक तरह से भगवान के
दर्शन के रास्ते में पैसों की दीवार तो खड़ी कर ही दी गई है। बड़े मंदिरों
में चढ़ने वाले चढ़ावे का ही हिसाब नहीं रहता है, ऊपर से गरीबों को लुटने का
भी काम हो रहा है। ऐसे मंदिरों पर सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। लेकिन कौन
करेगा, ऐसा क्या अपना शासन और प्रशासन ऐसी हिम्मत दिखा सकता है, हमें नहीं
लगता है कि वह ऐसा कर सकता है। एक सबसे बड़ी बात पुरी के मंदिर में यह भी
नजर आई कि मंदिर में कैमरा, मोबाइल तक ले जाने मना है। इसका कारण हमें अंदर
जाने पर मालूम हुआ कि अगर कोई कैमरा और मोबाइल ले जाएगा तो पंडों और मंदिर
के कर्ताधर्ताओं की सारी पोल खुल जाएगी। <br /> हमें इस बात का जरूर गर्व है
कि अपने राज्य छत्तीसगढ़ के किसी भी बड़े मंदिर में ऐसी लुट नहीं होती है।
यहां भी बड़े-बड़े मंदिर है लेकिन मजाल है कि यहां भगवान के दर्शन कराने के
नाम पर कोई पैसा मांगे।</span></span></div>
राजकुमार ग्वालानीhttp://www.blogger.com/profile/08102718491295871717noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-906208060476674822.post-87708176184455105872012-10-26T09:20:00.005+05:302012-10-26T09:20:54.059+05:30<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: red; font-size: large;">सीनियर हो गए हैं अब सर , चाहते हैं रहे जूनियरों में डर</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
आज मीडिया से लेकर हर क्षेत्र में सीनियर अब जूनियरों के लिए महज सर बन गए हैं और सर भी ऐसे जो चाहते हैं कि जूनियरों में उनका डर बना रहे। जूनियरों को सीनियरों ने आज कल अपनी बपौती मान लिया है और उनको प्रताड़ित करना तो मानो अपना अधिकार मानते हैं। हमें यह सब देखकर बहुत अफसोस होता है। हमें आज भी पहले की तरह अपने जूनियरों से सर कहलाना कभी पसंद नहीं आया। सर कहने वालों को साफ कह देते हैं कि अगर चाहते हैं कि हमसे बात करना और कुछ सीखना है तो पहले तो हमें सर कभी मत कहना, दूसरे कभी गुड मार्निंग जैसे शब्द भी प्रयोग मत करना। कहना तो सुप्रभात, नमस्कार या फिर जय हिंद कहें। क्यों कर हम हिन्दी में बोलने से कतराते हैं। हमारी भारतीय संस्कृति पूरी तरह से पश्चिम के पीछे भागने के कारण समाप्त होती जा रही है। हमें याद है, हमने कभी अपने सीनियरों को सर नहीं कहा। एक समय था जब सीनियरों को उम्र के हिसाब से संबोधित करते थे, ज्यादातर को भईया ही कहा जाता था। आज भी हम सीनियरों के साथ अपने बीट के अधिकारियों से बात करते हैं तो उनको कभी सर नहीं कहते हैं, भाई साहब कहकर ही बात करते हैं। अपने दफ्तर में अपने से सीनियरों को भईया या फिर चाचा, मामा, काका जैसे संबोधन के साथ सम्मान देना भारतीय परंपरा रही है, लेकिन अब इसका अंत होते जा रहा है। आज लोग अपने को रिश्तों में बांधना नहीं चाहते हैं। इसका कारण यह है कि आज लोगों को रिश्ते निभाना ही नहीं आता है। पहले लोग अपने से जूनियरों को बड़े प्यार से सिखाते थे, पर आज सिखाना तो दूर की बात है, उनके साथ ऐसा व्यवहार करते हैं, मानो उनका जूनियर होना गुनाह है। ऐसे लोगों पर हमको तरस आता है और सोचते हैं कि अगर यही सब उनके साथ हुआ होता तो उनको कैसा लगता। हर इंसान अपने क्षेत्र में पहले जूनियर होता है, इस बात को किसी को भुलना नहीं चाहिए। जूनियरों के साथ नरमी और प्यार से ही पेश आने से सम्मान मिलता है। वरना तो जूनियर दफ्तर के बाहर जाकर अपनी पूरी भड़ास सबके सामने निकालते हैं और सीनियरों को क्या-क्या नहीं कहते हैं, शायद आज अपने को सर कहलाना पसंद करने वाले सीनियर जानते नहीं हंै। खैर अपनी-अपनी सोच है। जिनको सर कहलाने में अच्छा लगता है, वे सर कहलाते रहे और बीच सड़क सबके सामने बेइज्जत होते रहे, वैसे ऐसे लोग हैं भी इसी लायक। अगर वे लायक होते तो जूनियरों को भी अपनी तरह लायक बनाने का काम करते न कि नालायक बनाने के रास्ते पर डालते। हमने कई बार जूनियरों को सीनियर से व्यहवार से दुखी होकर आंसू भी बहाते देखा है। हमें उस समय बहुत अफसोस होता है, और जूनियरों को समााते हैं, कोई बात नहीं है, तुम अपना काम करो, तुम अच्छा काम कर रहे हो और गलती काम करने वालों से ही होती, निक्कमे कभी गलती करते नहीं है, क्योंकि वो काम ही कहा करते हैं। ऐसे में जब किसी जूनियर के चेहरे पर मुस्कान आती है तो हमारे दिल को बड़ा सकुन मिलता है। यह बात तय है कि आपको सम्मान पाना है तो जूनियरों का भी सम्मान करना सीखना होगा। वरना.... । </div>
</div>
राजकुमार ग्वालानीhttp://www.blogger.com/profile/08102718491295871717noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-906208060476674822.post-72721014347068294742012-10-23T09:14:00.002+05:302012-10-23T09:14:59.677+05:30<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<h3 style="text-align: left;">
<span style="color: red; font-size: large;"> <span style="color: blue;">क्या रमन राज तीसरी बार कायम रहेगा</span></span></h3>
<h3 style="text-align: left;">
<span style="color: red; font-size: large;">अगले साल होने वाले चुनाव को लेकर अभी से अटकलों का बाजार गर्म होने लगा है। कोई कहता है कि रमन राज तीसरी बार भी कायम होगा, कोई कहता है कि अब भाजपा के दिन लद गए हैं। वैसे हमें भी लगता है कि अब रमन की हैट्रिक संभव नहीं है। भाजपा के कई नेता भी यह मानते हैं कि उनकी पार्टी की दाल अब अगले चुनाव में गलने वाली नहीं है। लेकिन रमन भक्त अब भी भरोसे के साथ यही कहते हैं कि रमन की हैट्रिक होगी। आप लोग क्या सोचते हैं, अपने विचार बताएं। अगर आपको लगता है कि रमन सरकार फिर आएगी, तो कारण जरूर बताए, अगर लगता है कि नहीं आएगी तो क्यों नहीं आएगी, इसका उल्लेख जरूर करें। </span></h3>
</div>
राजकुमार ग्वालानीhttp://www.blogger.com/profile/08102718491295871717noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-906208060476674822.post-33940175538191876242012-10-23T09:10:00.002+05:302012-10-23T09:10:36.066+05:30<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhRFQlbp6IZ_a72W6Y-SLsxvYOIlCERi3NkZCqB7Aa1BZ_LzG5ubyZHqoo_m97K-eAfIL901fHb7xkhjoxmtEI1Fox9Uxs83bPVJqRANPWVs7Aj5jSykl8J4KisSxm1V648F2eeoazJKog/s1600/100_1274.JPG" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="240" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhRFQlbp6IZ_a72W6Y-SLsxvYOIlCERi3NkZCqB7Aa1BZ_LzG5ubyZHqoo_m97K-eAfIL901fHb7xkhjoxmtEI1Fox9Uxs83bPVJqRANPWVs7Aj5jSykl8J4KisSxm1V648F2eeoazJKog/s320/100_1274.JPG" width="320" /></a></div>
<br /></div>
राजकुमार ग्वालानीhttp://www.blogger.com/profile/08102718491295871717noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-906208060476674822.post-76463501251467991872012-04-09T22:10:00.001+05:302012-04-09T22:10:13.511+05:30सूखे में भी होगी अच्छी फसल<div style="text-align: justify;">इंदिरा गांधी विश्वविद्यालय का अनुसंधान विभाग सूखे में भी लहराने वाली धान की किस्मों पर शोध कर रहा है। यूं तो एक किस्म इंदिरा बारानी पर शोध हो गया है, पर इस किस्म में भी उत्पादन क्षमता कम है। लेकिन अब एक दर्जन किस्मों पर शोध करके ज्यादा उत्पादन देने वाली फसलें तैयार की जा रही है। ज्यादा नहीं एक-दो साल के अंदर कम से कम दो किस्में ऐेसी किसानों को मिल जाएगी, जिनकी पैदावार किसान कर पाएंगे।<br />
छत्तीसगढ़ में धान की पैदावार 70 प्रतिशत वर्षा पर आधारित होती है। धमतरी और जांजगीर-चांपा को छोड़कर राज्य में और कहीं पर सिंचाई के साधन नहीं हैं। ऐसे में इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक लंबे समय से इस प्रयास में हैं कि प्रदेश के किसानों को ऐसी किस्मों का तोहफा दिया जाए जिससे उनको सूखे की स्थिति में भी भरपूर पैदावार लेने का मौका मिल सके। <br />
<b style="color: red;">मौसम की सही जानकारी बड़ी समस्या </b><br />
कृषि वैज्ञानिक कहते हैं कि प्रदेश में कब सूखा पड़ेगा इससे बारे में कोई जानकारी नहीं हो पाती है। सामान्यत: सितंबर के बाद सूखा पड़ता है। अपने राज्य में मौसम विभाग इतना सक्षम नहीं है कि वह सही-सही जानकारी दे सके कि कब पानी गिरेगा और कब नहीं। सितंबर के माह के मौसम की अगर पूरी सही जानकारी मिल जाए तो सूखे से निपटा जा सकता है। <br />
<b style="color: red;">पूणिमा-दंतेश्वरी में रुचि नहीं </b><br />
सूखे से निपटने के लिए प्रदेश में धान की दो किस्में पूर्णिमा और दंतेश्वरी हैं। लेकिन इन किस्मों में किसानों की रुचि इसलिए नहीं है क्योंकि इन फसलों में उत्पादन कम होता है। यही हाल नई किस्म इंदिरा बारानी का है। ये किस्में ऐसी हैं जो 105 से 110 दिनों में तैयार हो जाती हैं। लेकिन किसान इन किस्मों को लगाने से कतराते हैं। किसानों की पसंद की किस्मों में स्वर्णा, महामाया, एमटीयू 1010 और आईआर 64 हैं। इन किस्मों की फसलें 120 से 140 दिनों में तैयार होती है। इन किस्मों से पैदावार ज्यादा होती है। लेकिन जब फसलों के पकने का मुख्य समय रहता है, तभी सूखे के बारे में जानकारी हो पाती है। ऐसे में अगर सूखा हुआ तो फसल खराब हो जाती है। <br />
<b style="color: red;">रुटलेंथ बढ़ाने पर शोध </b><br />
कृषि वैज्ञानिक डॉ. एसबी वेरूलकर बताते हैं कि सूखे से निपटने के लिए धान की किस्मों में रुटलेंथ बढ़ाने पर भी शोध कर रहे हैं। वे बताते हैं कि सामान्यत: रुटलेंथ 30 से 50 सेमी होता है, लेकिन इसे 50 से 70 सेमी करने पर काम चल रहा है। ऐसा होने पर फसल की जड़ें जमीन में ज्यादा अंदर तक रहेंगी तो उनको पानी की कमी नहीं होती और फसल खराब होने से बच जाएगी। <br />
<b style="color: red;">दो साल बाद मिलेगा तोहफा </b><br />
श्री वेरूलकर बताते हैं कि विश्वविद्यालय में कुछ सालों से सूखे में ज्यादा उत्पादन देने वाले किस्मों पर शोध चल रहा है। करीब एक दर्जन किस्मों पर शोध कार्य हो रहा है। इनमें से दो साल के अंदर कम से कम दो किस्मों में सफलता मिल जाएगी। किस्मों में सफलता मिलने पर इनका नामांकर ण होगा और फिर इन किस्मों को किसानों को लगाने की सलाह दी जाएगी। वे कहते हैं कि एक किस्म पर शोध करने में 10 से 12 साल का समय लग जाता है। <br />
<br />
</div>राजकुमार ग्वालानीhttp://www.blogger.com/profile/08102718491295871717noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-906208060476674822.post-58042601803788715892012-04-08T22:01:00.001+05:302012-04-08T22:01:35.568+05:30प्रतिबंधित दवाओं का डंप सेंटर भारतप्रतिबंधित दवाओं के सबसे बड़े डंप सेंटर के रूप में भारत का इस्तेमाल अंतरराष्ट्रीय रैकेट कर रहा है। अज्ञानता के कारण छत्तीसगढ़ सहित देश के ज्यादातर राज्यों में से दवाएं बेची जा रही हैं। इन दवाओं के नुकसान से अंजान लोग इनका उपयोग कर रहे हैं। डॉक्टर दवाओं के बारे में जानकारी होने के बाद भी दवाओं को बेधड़क प्रलोभन के मोह में लिखकर मरीजों को दे देते हैं। डॉक्टरों के साथ मेडिकल स्टोर संचालक भी इस बात से इंकार नहीं करते हैं कि प्रतिबंधित दवाएं बेची जा रही हैं। <br />
छत्तीसगढ़ में करीब एक दर्जन ऐसी प्रतिबंधित दवाओं के खुले आम बेचे जाने की खबर है जिनके बारे में कहा जाता है कि ये दवाएं विदेशों में ही नहीं बल्कि भारत में भी प्रतिबंधित हैं। प्रतिबंधित दवाओं के नुकसान से बेखबर मरीज लगातार ऐसी दवाओं का सेवन करके और ज्यादा बीमार होते जा रहे हैं। विशेषज्ञों की मानें तो जो दवाएं विदेशों में प्रतिबंधित कर दी जाती हैं, उन दवाओं को भारत में लाकर डंप कर दिया जाता है। भारत के बाजार को सबसे बड़ा डंप सेंटर माना जाता है। यह सब इसलिए है क्योंकि अपने देश के लोग स्वास्थ्य के प्रति जागरूक नहीं हैं। अज्ञानता के कारण डॉक्टर जो लिखकर दे देते हैं, उसे मरीज आंख बंद करके ले लेते हैं। इन सब बातों का ही फायदा डॉक्टर उठाते हैं। <br />
<b style="color: red;">डॉक्टर प्रलोभन में </b><br />
छत्तीसगढ़ में जो डॉक्टर प्रतिबंधित दवाएं लिखकर मरीजों को देते हैं, उनके बारे में कहा जाता है कि उनको दवा कंपनी के एमआर प्रलोभन देकर ऐसी दवाएं लिखने के लिए कहते हैं। विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि ग्रामीण क्षेत्र के डॉक्टरों को तो जानकारी ही नहीं होती है कि कौन सी दवाएं प्रतिबंधित हैं। मेडिकल स्टोर के संचालक भी मानते हैं कि प्रतिबंधित दवाएं बेची जा रही है। <br />
<b style="color: red;">सेक्रीन को 50 साल में मिली मान्यता</b><br />
वरिष्ठ हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. ए. फरिश्ता कहते हैं कि विश्व में उन्हीं दवाओं का प्रयोग किया जाता है जिन दवाओं को यूएसएफडीए से मान्यता मिलती है। इसके मान्यता के नियम इतने कड़े हैं कि हर दवा को आसानी से मान्यता नहीं मिलती है। वे बताते हैं कि मधुमेय के प्रयोग में आने वाले सेक्रीन को मान्यता मिलने में 50 साल का समय लग गया था। <br />
<b style="color: red;">मेडिकल कौंसिल ध्यान दे</b><br />
डॉ. फरिश्ता का मानना है कि भारत में बेची जा रही प्रतिबंधित दवाओं के लिए मेडिकल कौंसिल के साथ केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय को गंभीरता दिखानी चाहिए। सतत निगरानी से ही भारत को प्रतिबंधित दवाओं से मुक्त किया जा सकता है। वे कहते हैं छत्तीसगढ़ में अज्ञानता ज्यादा है ऐसे में गांव में काम करने वाले डॉक्टरों, खासकर तीन साल का कोर्स करने वालों के लिए हर तीन माह में रिफे्रशर कोर्स होना चाहिए, ताकि उनको जानकारी हो सके कि विश्व में क्या नया हो रहा है। प्रतिबंधित दवाओं की पर्ची लिखने वालों के साथ ऐसे मेडिकल स्टोर का लायसेंस भी रद्द होना चाहिए।<br />
<b style="color: red;"> प्रतिबंधित दवाएं और नुकसान </b><br />
एनालजीन- बोन मेरो के लिए घातक <br />
सीजाप्राइड- दिल की धड़कन के लिए घातक <br />
ड्रोपेरीडोल- दिल की धड़कन के लिए घातक<br />
फ्यूराजोलीडोल- केंसर हो सकता है <br />
नीमेसुलाइड- लीवर के लिए घातक <br />
नाइड्रोफ्यूराजोन-केंसर हो सकता है <br />
फेनाल्फेलिन- केंसर हो सकता है <br />
फेनाइलफ्रोपेनोलेमाइनल- मिरगी का खतरा <br />
आक्सीफेनब्यूटाजोन- ब्रोन मेरो के लिए घातक <br />
पिपराजीन - नाडी तंत्र के लिए खतरा <br />
क्विनिडोक्लोर- लकवे का खतरा राजकुमार ग्वालानीhttp://www.blogger.com/profile/08102718491295871717noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-906208060476674822.post-14985340176153379322012-01-01T10:15:00.002+05:302012-01-01T10:15:57.851+05:30नव वर्ष की नई सुबह .....<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: center;"><b>नव वर्ष की नई सुबह<br />
<br />
ऐसी लाए खुशहाली<br />
<br />
खुशियों ने घर-आंगन महके<br />
<br />
रहे न कोई झोली खाली<br />
<br />
हर इंसान साल भर चहके<br />
<br />
हर दिन हो दीपावली<br />
<br />
गरीबों को भी रोज खाना मिले<br />
<br />
भगवान की रहमत हो ऐसी निराली<br />
<br />
हमने तो साल के पहले दिन<br />
<br />
यही दुआ है दिल से निकाली<br />
<br />
चलिए नव वर्ष की खुशी में<br />
<br />
पीए अब गरम चाय की एक प्याली<br />
</b></div></div>राजकुमार ग्वालानीhttp://www.blogger.com/profile/08102718491295871717noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-906208060476674822.post-29622615405765257832011-12-26T08:36:00.000+05:302011-12-26T08:36:06.104+05:30ये दुनिया ऐसी ही है, कभी सुधर नहीं पाएगी<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: center;"><b>अबे तू लड़की नहीं जो गुड मार्निंग कहेगा तो <br />
गुड मार्निग कहने वालों की लाइन लग जाएगी<br />
अबे गधे तू चाहे कितना भी अच्छा लिखे <br />
कमेंट करने वालों की फौज कभी नहीं आएगी <br />
तू लाख देश और समाज के हित में लिख <br />
तेरी बात किसी को समझ में नहीं आएगी <br />
एक लड़की अगर बिना वजह भी चीखी <br />
तो उसे देखने मर्दों की लाइन लग जाएगी <br />
तू चोट खाकर रास्ते में ही पड़ा रहेगा <br />
तूझ पर मर्दों की बिरादरी भी तरस नहीं खाएगी<br />
क्या सोच रहा हैं बेवकूफ बंदे <br />
ये दुनिया ऐसी ही है, कभी सुधर नहीं पाएगी <br />
</b></div></div>राजकुमार ग्वालानीhttp://www.blogger.com/profile/08102718491295871717noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-906208060476674822.post-76056318568357527492011-12-09T08:53:00.000+05:302011-12-09T08:53:54.377+05:30पर्चा तो लीक होगा ही<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: justify;"><b style="color: red;">अब आधुनिक तरीके अपनाएगा रैकेट </b><br />
<br />
पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय ने बीडीएस के सभी पर्चे रद्द तो कर दिए हैं और नए सिरे से परीक्षा लेने की तैयारी भी प्रारंभ हो गई है। इधर पर्चा लीक कराने वाले रैकेट ने भी फिर से कमर कल ली है पर्चा लीक करने की। रैकेट इस बार आधुनिक तरीकों का प्रयोग करने वाला है ताकि कोई भी पर्चा मीडिया तक न पहुंच सके। रविवि ने भी पर्चा लीक न हो पाए इसकी तैयारी की है, पर कुलपति डॉ. एस के पांडेय कहते हैं कि पर्चा लीक नहीं होगा इसकी गारंटी नहीं दे सकते हैं। <br />
बीडीएस के लगातार लीक हो रहे पर्चो को लेकर रविवि के कुलपित डॉ. एसके पांडेय ने साहस दिखाते हुए सभी पर्चों को रद्द कर दिया है। उनके इस कदम से परीक्षा विभाग के साथ पर्चा लीक करने वाले निजी कॉलेजों का रैकेट सकते में है। रैकेट ने जिन विद्यार्थियों को पर्चे बेचे थे, वे अपनी नाराजगी जता रहे हैं। रैकेट चलाने वालों ने अब दूबारा होने वाली परीक्षा में भी पर्चे लीक करने के लिए कमर कस ली है। इस बार किसी भी कीमत पर किसी भी विद्यार्थी को पर्चे की फोटो काफी नहीं दी जाएगी। जिनको पर्चे बेचे जाएंगे, उनको ई-मेल और एसएमएस के जरिए ही सवाल बताएं जाएंगे। ऐसा इसलिए किया जा रहा है ताकि पिछली बार की तरह मीडिया के हाथ कोई पर्चा न लगे। <br />
<b style="color: red;">परीक्षा विभाग कुलपति से खफा</b> <br />
पर्चे रद्द होने से रविवि का परीक्षा विभाग और इसके कर्ताधर्ता बहुत ज्यादा खफा हैं। वे गुरुवार को दिन भर विभाग में अपनी नाराजगी जताते रहे। विभाग के प्रमुख सबसे ज्यादा खफा लगे, वे सभी ये यही कहते रहे कि कुलपति का क्या है, उन्होंने तो उठाकर पर्चे रद्द कर दिए, पर भुगतना तो हम लोगों को है। एक तो विभाग में स्टॉफ कम है, ऊपर से फिर से परीक्षा लेने के आदेश हो गए हैं। ऐसे में क्या किया जा सकता है। जानकारों की मानें तो परीक्षा विभाग प्रमुख की खींज इस बात की नहीं है कि पर्चे रद्द हो गए हैं, बल्कि इस बात की है, कि वे सीधे तौर पर पर्चा लीक करने वालों से साथ मिले हुए हैं। विवि का परीक्षा विभाग प्रारंभ से ही संदेह के घेरे में हैं। बीडीएस के सभी पर्चे निजी कॉलेजों के प्रोफेसरों से सेट कराए जाते हैं और कमीशन के खेल में ये पर्चे आसानी से लीक हो जाते हैं। पर्चे लीक करने के एवज में परीक्षा विभाग को भी खुश किया जाता है। <br />
<b style="color: red;">पढ़ाई करने वाले विद्यार्थी परेशानी में </b><br />
पर्चे रद्द होने से सबसे ज्यादा परेशानी में पढ़ाई करने वाले विद्यार्थी हैं। उन्होंने पर्चों के लिए खूब तैयारी की थी, अब उनको नए सिरे से तैयारी करनी पड़ेगी। बहुत से विद्यार्थियों ने पर्चे रद्द करने से परेशान होने की बात धरसीवां के विधायक देवजी भाई पटेल से भी कही। श्री पटेल ने कुलपति डॉ. एसके पांडे से चर्चा करके स्थिति जानी कि मामला क्या है। कुलपति ने उनको बताया कि जांच समिति से पाया कि जो पर्चे लीक हुए थे, वे बहुत ज्यादा मुख्य पर्चा से मिलते-जुलते थे इसलिए सारे पर्चे रद्द करने पड़े। <br />
<b style="color: red;">कम कीमत में देंगे पर्चा </b><br />
पर्चा लीक करने वाले रैकेट ने खफा विद्यार्थियों को मनाने के लिए अब फिर से होने वाली परीक्षा के पर्चे उनको कम कीमत पर उपलब्ध कराने का आश्वासन दिया है। विद्यार्थी तो बिना कीमत के पर्चे चाहते हैं, लेकिन ऐसा संभव न होने के बात कहकर रैकेट के लोगों ने हाथ खड़े कर लिए हैं। रैकेट के लोगों ने विद्यार्थियों से कहा है कि हमें तो दूसरी बार भी पर्चों की कीमत चुकानी पड़ेगी, ऐसे में मुफ्त में पर्चे दे पाना संभव नहीं है।<br />
<b style="color: red;">इसलिए विवि प्रशासन गंभीर नहीं </b><br />
डेंटल कॉलेजों को बहुत जल्द रविवि से अलग हो जाना है, यही वजह है कि रविवि प्रशासन बीडीएस के पर्चो को लेकर गंभीर नहीं है। रविवि प्रशासन तो चाहता है कि जितनी जल्द यह बला डेंटल विश्वविद्यालय के मथे चली जाए अच्छा है। <br />
<b style="color: red;">पर्चा लीक न होने की गारंटी नहीं:कुलपति </b><br />
कुलपति एसके पांडे कहते हैं कि विवि प्रशासन पर्चा लीक न हो इसके लिए पूरी सावधानी बरतेगा, लेकिन हम गारंटी नहीं दे सकते कि पर्चा लीग नहीं होगा। <br />
<br />
</div></div>राजकुमार ग्वालानीhttp://www.blogger.com/profile/08102718491295871717noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-906208060476674822.post-71533797963128227252011-12-04T11:45:00.002+05:302011-12-04T11:45:37.886+05:30मर कर भी हम किसी को खुश कर जाएंगे<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: center;"><b>हमारी बर्बादी का नहीं होगा किसी को गम <br />
नहीं होंगी हमारी मौत पर किसी की आंखें नम <br />
वो हर पल करते हैं हमारी मौत का इंतजार <br />
न जाने क्यों हमारी मौत का तमाशा देखने हैं वो बेकरार <br />
हम भी सोचते हैं क्यों कराएं उसे ज्यादा इंतजार <br />
दुआ करते हैं खुदा से जल्द खत्म हो उनका इंतजार <br />
जब हम इस दुनिया से रूखसत हो जाएंगे <br />
हम जानते हैं उनके मंसूबे पूरे हो जाएंगे <br />
हमें तो मर कर खुशी होगी इस बात की <br />
मर कर भी हम किसी को खुश कर जाएंगे </b></div></div>राजकुमार ग्वालानीhttp://www.blogger.com/profile/08102718491295871717noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-906208060476674822.post-28631986486481564062011-11-29T08:49:00.000+05:302011-11-29T08:49:17.871+05:30हर तरफ है गुंडों की सरकार<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: center;"><b>सदन के अंदर हो या बाहर <br />
हर तरफ है गुंडों की सरकार <br />
दोनों के ही कारनामों से <br />
आम जनता हो गई है बेजार <br />
किसमें है दम इनसे पा सके पार <br />
क्योंकि इनके पास है पावर बेशुमार <br />
ये गुंडें अन्ना हो या रामदेव बाबा <br />
सब पर जोर दिखाते हैं <br />
देश का भला चाहने वालों <br />
पर लाठियां चलवाते हैं <br />
अपने देश में मलाई <br />
विदेश में पहुंचाते हैं <br />
देश के बाहर जाकर <br />
खूब मौज उड़ाते हैं<br />
आम जनता भले भूखी-प्यासी रहे <br />
अपने कुत्तों को ये जूस पिलाते हैं <br />
कभी तो भरेगा इनके पाप का घड़ा <br />
फिर देखेंगे कौन गुंडा रहेगा खड़ा <br />
</b><b style="color: red;">(अभी-अभी एक ताजा कविता लिखी है, पेश है)</b><b><br />
</b></div></div>राजकुमार ग्वालानीhttp://www.blogger.com/profile/08102718491295871717noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-906208060476674822.post-11622903672327456632011-11-26T09:32:00.002+05:302011-11-26T09:32:49.584+05:30सुगंधित धान की ऊंचाई घटी<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: justify;">प्रदेश में सुगंधित धान की करीब एक दर्जन प्रजातियों की ऊंचाई कम करने की कवायद चल रही है। पहले चरण में ऊंचाई कम करने में सफलता मिली है, लेकिन जितनी ऊंचाई कम करने की योजना है उसमें सफलता मिलने में समय लगेगा। <br />
सुगंधित धान की प्रजातियों में ऊंचाई ज्यादा होने के कारण उत्पादन प्रभावित हो रहा है। ऊंचाई के कारण उपयुक्त मात्रा में खाद भी डालने में परेशानी होती है। ऐसे में कृषि विश्वविद्यालय के अनुसंधान केंद्र में इस पर शोध किया जा रहा है। वर्तमान में धान की ऊंचाई 150 से 160 सेमी के आप-पास है। इस ऊंचाई को 110 से 120 सेमी के आस-पास लाने के प्रयास के तहत पहले साल सुगंधित धान में जवा फूल, बादशाह भोग, विष्णु भोग, गंगा बारू, कपूर क्रांति, जीरा फूल सहित करीब एक दर्जन प्रजातियों की फसल लगाई गई थी। पहले साल की फसल में ऊंचाई में कुछ कमी तो आई है, लेकिन इसे संतोषजनक नहीं कहा जा सकता है। जितनी ऊंचाई कम करने की योजना है, उस तक पहुंचने में कम से कम पांच से छह साल का समय लग जाएगा। <br />
अभी तो कृषि विवि के अनुसंधान केंद्र के खेतों में ही कुछ 3 से 4 मीटर चौड़ा और 20 मीटर लंबाई में फसल लगाई गई थी। अब अगले साल से प्रदेश के कुछ जिलों जहां पर सुंगधित धान की खेती होती है, वहां फसलें लगाई जाएगीं। पहले फसलों को राज्य स्तर पर पहचान दिलाने के बाद राष्ट्रीय स्तर पर इसकी पहचान के प्रयास होंगे। ऊंचाई ज्यादा होने के कारण फसल गिर जाती है जिससे फसल का नुकसान होता है। जब शोध में सफलता मिल जाएगी तो किसानों को फसल से ज्यादा उत्पादन मिल सकेगा। अगले साल रायपुर के साथ बिलासपुर, रायगढ़, कवर्धा और अम्बिकापुर में फसल लगाने के प्रयास होंगे। <br />
<br />
</div></div>राजकुमार ग्वालानीhttp://www.blogger.com/profile/08102718491295871717noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-906208060476674822.post-75404454404471950582011-11-25T09:01:00.000+05:302011-11-25T09:01:00.405+05:30एक तमाचा तो नाकाफी है<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: justify;">एक थप्पड़ दिल्ली में ऐसा पड़ा कि अब इसकी गूंज पूरी दुनिया में सुनाई पड़ रही है। सुनाई पड़नी भी चाहिए। आखिर यह आम आदमी का थप्पड़ है, इसकी गूंज तो दूर तलक जानी ही चाहिए। कहते हैं कि जब आम आदमी तस्त्र होकर आप खोता है तो ऐसा ही होता है। आखिर कब तक आम जनों को ये नेता बेवकूफ बनाते रहेंगे और कीड़े-मकोड़े समाते रहेंगे। अन्ना हजारे का बयान वाकई गौर करने लायक है कि क्या एक ही मारा। वास्तव में महंगाई को देखते हुए यह एक तमाचा तो नाकाफी लगता है। <br />
इसमें कोई दो मत नहीं है कि आज देश का हर आमजन महंगाई की मार से इस तरह मर रहा है कि उनको कुछ सुझता नहीं है। ऐसे में जबकि कुछ समझ नहीं आता है तो इंसान वही करता है जो उसे सही लगता है। और संभवत: उस आम आदमी हरविंदर सिंह ने भी वही किया जो उनको ठीक लगा। भले कानून के ज्ञाता लाख यह कहें कि कानून को हाथ में लेना ठीक नहीं है। लेकिन क्या कानून महज आम जनों के लिए बना है? क्या अपने देश के नेता और मंत्री कानून से बड़े हैं? क्यों कर आम जनों के खून पसीने की कमाई पर भ्रष्टाचार करके ये नेता मौज करते हैं। क्या भ्रष्टाचार करने वाले नेताओं के लिए कोई कानून नहीं है? हर नेता भ्रष्टाचार करके बच जाता है।<br />
अब अपने देश के राजनेताओं को समझ लेना चाहिए कि आम आदमी जाग गया है, अब अगर ये नेता नहीं सुधरे तो हर दिन इनकों सड़कों पर पिटते रहने की नौबत आने वाली है। कौन कहता है कि महंगाई पर अंकुश नहीं लगाया जा सकता है। हकीकत तो यह है कि सरकार की मानसकिता ही नहीं है देश में महंगाई कम करने की। <b style="color: red;">एक छोटा सा उदाहरण यह है कि आज पेट्रोल की कीमत लगातार बढ़ाई जा रही है। कीमत बढ़ रही है, वह तो ठीक है, लेकिन सरकार क्यों कर इस पर लगने वाले टैक्स को समाप्त करने का काम नहीं करती है। एक इसी काम से महंगाई पर अंकुश लग जाएगा। जब पेट्रोल-डीजल पर टैक्स ही नहीं होगा तो यह इतना सस्ता हो जाएगा जिसकी कल्पना भी कोई नहीं कर सकता है। आज पेट्रोल और डीजल की कीमत का दोगुना टैक्स लगता है। टैक्स हटा दिया जाए तो महंगाई हो जाएगी न समाप्त। </b><br />
पेट्रोल और डीजल की बढ़ी कीमतों की मांग ही आम जनों के खाने की वस्तुओं पर पड़ती है। माल भाड़ा बढ़ता है और महंगाई बेलगाम हो जाती है। जब महंगाई अपने देश में बेलगाम है तो एक आम इंसान बेलगाम होकर मंत्री का गाल लाल कर देता है तो क्या यह गलत है। एक आम आदमी के नजरिए से तो यह कताई गलत नहीं है।<br />
<b style="color: red;">थप्पड़ पर अन्ना हजारे के बयान पर विवाद खड़ा करने का भी प्रयास किया गया। उनका कहना गलत नहीं था, बस एक मारा। वास्तव में महंगाई की मार में जिस तरह से आम इंसान पिस रहा है, उस हिसाब से तो एक तमाचा नाकाफी है। </b><br />
</div></div>राजकुमार ग्वालानीhttp://www.blogger.com/profile/08102718491295871717noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-906208060476674822.post-33079794864632940582011-11-17T08:19:00.002+05:302011-11-17T08:19:59.119+05:30सब्जी की बोआई में ही कमाई<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: justify;">छत्तीसगढ़ की जलवायु इतनी अच्छी है कि यहां पर हर किस्म की फसल लगाई जा सकती है। छत्तीसगढ़ को भले धान का कटोरा कहा जाता है, लेकिन धान की पैदावार से किसानों की कमाई नहीं होती है। ऐसे में प्रदेश के किसानों को संपन्न बनाने के लिए उनको अब सब्जी भाजी वाली उद्यानिकी खेती पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए। सब्जियों की खेती से ही किसान पेशेवर हो पाएंगे। छत्तीसगढ़ की 50 प्रतिशत भूमि वैसे भी शुष्क खेती के लायक है। <br />
राष्ट्रीय हार्टिकल्चर रिसर्च फाउंडेशन के पूर्व संचालक डॉ. यूबी पांडे ने कहा कि वे छत्तीसगढ़ के किसानों को सलाह देना चाहते हैं कि उनको धान की खेती के साथ अब उद्यानिकी की खेती की तरफ भी ध्यान देना चाहिए। यही खेती ऐसी है जिससे किसानों को कमाई हो सकती है। धान की खेती में किसान कमाई नहीं कर पाते हैं, बड़ी मुश्किल से आज उनके अपने खाने के लिए ही धान हो पाता है। श्री पांडे कहते हैं कि मैं छत्तीसगढ़ की जलवायु के बारे में जानता हूं। यहां हर किस्म की फसल आसानी से लगाई जा सकती है। वे कहते हैं कि क्यों कर नासिक का प्याज बंगलादेश जाता है। छत्तीसगढ़ के किसान चाहें तो यहां का प्याज विदेशों में जा सकता है। श्री पांडे कहते हैं कि प्रदेश के छोटे किसानों को तकनीकी रूप से मजबूत करके उनको उद्यानिकी की ज्यादा फसल लेने के लिए तैयार किया जा सकता है। वे बताते हैं कि देश में 2009 में 1290 लाख टन सब्जियों का उत्पादन हुआ था। पिछले साल यह उत्पादन 1350 लाख टन तक पहुंचा है। लेकिन इसके बाद भी उत्पादन में अभी और इजाफा जरूरी है। वे कहते हैं कि छत्तीसगढ़ की जलवायु को देखते हुए यहां प्याज का रिसर्च सेंटर होना चाहिए। <br />
<b>कौन सी फसल कहां लगाएं</b><br />
प्रदेश की जलवायु और भौगोलिक स्थिति के मुताबिक कौन सी फसल के लिए कहां का स्थान उपयुक्त है, इसके बारे में इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय प्रबंध मंडल के सदस्य प्रोफेसर मनहर आडिल बताते हैं कि बस्तर संभाग की बात करें तो वहां की जलवायु के हिसाब से वहां पर काजू, कंदी फसलें इसमें जिमी कंद, अदरक, आलू, प्याज, लहसून की फसलें लगाई जाती हैं। सरगुजा, जशपुर, कोरिया का क्षेत्र पठारी क्षेत्र है इसमें चीकू, लीजी और सेब की फसल लगाई जाती है। मैदानी क्षेत्रों में कांकेर के बाद धमतरी, महासमुन्द, रायपुर, दुर्ग, राजनांदगांव और बिलासपुर हैं। यहां के लिए उपयुक्त फसलों में केला, नीबू, संतरा, जाम और आम है। <br />
</div></div>राजकुमार ग्वालानीhttp://www.blogger.com/profile/08102718491295871717noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-906208060476674822.post-43610116441431749162011-11-15T08:16:00.000+05:302011-11-15T08:16:34.489+05:30बाड़ी परंपरा को जिंदा करें<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: justify;">आसमानी बारिश के साथ जिस तरह से जमीन में पानी की कमी हो गई है, उससे यह तय है कि अब शुष्क खेती पर ही ज्यादा ध्यान देना पड़ेगा। शुष्क खेती के लिए प्रदेश में बाड़ी परंपरा को फिर से जिंदा करने की जरूरत है। <br />
ये बातें कृषि विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित राष्ट्रीय उद्यानिकी कार्यशाला की में सामने आई। एक समय वह था जब छत्तीसगढ़ का हर किसान खेतों में धान लगाने के साथ अपने घरों की बाड़ी में सब्जी-भाजी लगाने का काम करता था, लेकिन धीरे-धीरे यह परंपरा समाप्त सी हो गई है। कार्यक्रम के मुख्यअतिथि केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री चरणदास महंत ने कहा कि अपने छत्तीसगढ़ की प्रारंभ से यह परंपरा रही है कि यहां पर हमेशा से खेती-बाड़ी शब्द का प्रयोग किया जाता रहा है, लेकिन अब खेती तो रह गई है, लेकिन बाड़ियां विरान हो गई हैं। पर अब समय की जरूरत है कि बाड़ियों को जिंदा करना पड़ेगा। आज आसमान से किसानों को उतना पानी नहीं मिल पाता है जितना खेती के लिए चाहिए। नहरों के भी कंठ सुख से गए हैं। ऐसे में आज यह जरूरी है कि ऐसी खेती पर ध्यान दिया जाए जो कम पानी में होती है। कम पानी वाली खेती में सब्जी, फल, फूल ही आते हैं। भारत सरकार ने भी राष्ट्रीय उद्यानिकी मिशन प्रारंभ किया है ताकि पूरे देश में शुष्क खेती पर ज्यादा ध्यान दिया जा सके। छत्तीसगढ़ के लिए केंद्र ने पांच साल के लिए 413 करोड़ की राशि दी है। <br />
<b style="color: red;">राष्ट्रीय कृषि संस्थान जनवरी में </b><br />
केंद्रीय मंत्री चरणदास महंत ने कहा कि उनके सामने प्रदेश के कृषि मंत्री चंद्रशेखर साहू ने दो राष्ट्रीय कृषि संस्थान खोलने की मांग रखी है। मैं वादा करता हूं कि कम से कम एक संस्थान तो जनवरी से प्रारंभ हो जाएगा। इसी के साथ उन्होंने कहा कि इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय में जितनी भी अनुसंधान केंद्र खुलने हैं उन सभी लंबित प्रस्तावों को एक बार लेकर विवि के कुलपति दिल्ली आ जाएं तो अगले माह संसद सत्र में सभी प्रस्ताव मंजूर करवा दिए जाएंगे। श्री महंत ने इस बात पर सहमति जताई कि सुरक्षित खेती के लिए किसानों को फेनिसिंग के लिए अनुदान मिलना चाहिए। <br />
<b style="color: red;">दिल्ली में छत्तीसगढ़ की शिमला मिर्च </b><br />
प्रदेश के कृषि मंत्री चंद्रशेखर साहू ने कहा कि इसमें दो मत नहीं है कि छत्तीसगढ़ में उद्यानिकी खेती का रकबा बढ़ा है। राज्य में सब्जी-भाजी की खेती किस दिशा में इसका सबसे बड़ा सबूत यह कि दिल्ली के बाजारों बिकने वाली शिमला मिर्च की आधी पूर्ति छत्तीसगढ़ से होती है। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ की खेती को नई दिशा में ले जाने के लिए यहां उद्यानिकी खेती को बढ़ावा देने की जरूरत है। <br />
<b style="color: red;">50 प्रतिशत जमीन उद्यानिकी खेती के लायक </b><br />
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कृषि विवि के कुलपति एसके पाटिल ने कहा कि प्रदेश में 40 से 50 प्रतिशत जमीन उद्यानिकी खेती के लिए उपयुक्त है। जरूरत है इस दिशा में किसानों को प्रोत्साहित करके की। कार्यशाला में आए राष्ट्रीय वैज्ञानिकों से किसान प्रोत्साहित होंगे। किसानों को साधन संपन्न भी बनाने की जरूरत है। कम पानी वाली फसलों पर ध्यान देना आज समय की जरूरत है। छोटे किसानों के समूह बनाकर खेती करने से फायदा मिलेगा। <br />
<b style="color: red;">सरगुजा है लीचीगढ़ </b><br />
कार्यशाला में सरगुजा के किसान नानक सिंह ने बताया कि सरगुजा आज पूरी तरह से लीचीगढ़ हो गया है। मैं वहां पर बरसों से लीची की खेती कर रहा हूं। मप्र के मुख्यमंत्री रहे दिग्विजय सिंह ने मेरी नर्सरी की लीची खाने के बाद सरगुजा के लिए 60 लाख की मदद भिजवाई थी और सरगुजा को लीची जिला घोषित किया था। सरगुजा की लीची को देश के बाहर भी भेजा जा सकता है। इसके लिए योजना बनाने की जरूरत है। प्रचार-प्रसार के अभाव में सरगुजा की लीची को पहचान नहीं मिल पा रही है। रायपुर के किसान हैपी सिंबल ने बताया कि उनके पूर्वजों ने काजू की खेती प्रारंभ की थी, वे आज सब्जी, फल, फूल की खेती करते हैं। छत्तीसगढ़ की सब्जियों की महक लंदन तक पहुंच गई है। उन्होंने बताया कि उनके मामा लंदन में हैं जहां छत्तीसगढ़ की सब्जियों को भेजा जाता है। उन्होंने वादा किया कि उनकी कंपनी सरगुजा की लीची को भी विदेशी पहचान देने का काम करेगी। <br />
</div></div>राजकुमार ग्वालानीhttp://www.blogger.com/profile/08102718491295871717noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-906208060476674822.post-15231897743630694722011-11-12T09:05:00.000+05:302011-11-12T09:05:11.276+05:30राजनीति अब धंधेबाजों का खेल<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: justify;"><b style="color: red;">आज अपने देश की राजनीति पूरी तरह से धंधेबाजों का खेल बनकर रह गई है। यह बात हम हवा में नहीं कह रहे हैं। आज अपने राज्य और देश का विकास चाहने वाले राजनेताओं की जरूरत नहीं रह गई है। अच्छे राजनेता राजनीति से किनारा कर गए हैं। अपने राज्य छत्तीसगढ़ के पूर्व वित्त मंत्री डॉ. रामचंद्र सिंह देव भी ऐसे नेता हैं जिन्होंने राजनीति की गंदगी को देखते हुए राजनीति से किनारा कर लिया है। उनसे बात करने का मौका मिला तो उनका यह दर्द उभर कर सामना आया। उन्होंने जो कुछ हमें बताया हम उनके शब्दों में ही पेश कर रहे हैं। </b><br />
छत्तीसगढ़ में विकास का सपना लिए मैंने 1967 में पहला विधानसभा चुनाव रिकॉर्ड मतों से जीता था। मेरी जीत के पीछे मेरा नहीं बल्कि मेरे पिता डीएस सिंह देव का नाम था जिनके कारण मुझ जैसे अंजान को मतदाताओं ने सिर आंखों पर बिठाया था। यहां से शुरू हुए मेरे राजनीति के सफर के बाद मैंने छह बार चुनाव जीता। पांच बार कांग्रेस की टिकिट पर और एक बार निर्दलीय। लेकिन इधर राजनीति में जिस तरह से हालात बदले और आज राजनीति जिस तरह से व्यापार में बदल गई है उसके कारण ही मुझे सक्रिय राजनीति से किनारा करना पड़ा। राजनीति से भले मैंने संन्यास ले लिया है, लेकिन जब भी विकास की बात आती है तो मैं चाहे छत्तीसगढ़ हो या मप्र या फिर मेरा पुराना राज्य बंगाल, मैं सबके लिए लड़ने हमेशा तैयार रहता हूं। <br />
राजनीति में आने का पहला मकसद होता है अपने क्षेत्र और राज्य के विकास के लिए काम करना। मैंने अपने राजनीतिक जीवन में यही प्रयास किया, लेकिन जब मुझे लगने लगा कि अब राजनीति ऐसी नहीं रह गई जिसमें रहकर कुछ किया जा सके तो मैंने संन्यास लेने का फैसला कर लिया। आज का मतदाता वोट डालने के एवज में पैसा चाहता है। वैसे मैं आज भी कांग्रेस में हूं, लेकिन सक्रिय राजनीति से मेरा कोई नाता नहीं रह गया है। मैं वर्तमान में राजनीतिक हालात की बात करूं तो आज कांग्रेस हो या भाजपा दोनों पार्टियों में अस्थिरता का दौर चल रहा है। छत्तीसगढ़ राज्य के 11 सालों की यात्रा की बात करें तो कांग्रेस शासन काल के तीन साल तो राज्य की बुनियाद रखने में ही निकल गए। भाजपा सरकार के आठ सालों की बात करें तो इन सालों में भाजपा सरकार ने ऐसा कुछ नहीं किया है जिसको महत्वपूर्ण माना जा सके। <br />
छत्तीसगढ़ बना तो इसकी आबादी दो करोड़ 5 लाख थी। छत्तीसगढ़ खनिज संपदा से परिपूर्ण राज्य है। यहां कोयला, लोहा, बाक्साइड, चूना, पत्थर भारी मात्रा में हैं। राज्य में इंद्रावती नदी से लेकर महानदी के कारण पानी की कमी नहीं है। इतना सब होने के बाद जिस तरह से राज्य का विकास होना था वह नहीं हो सका है। राज्य की 75 प्रतिशत आबादी गांवों में रहती है, लेकिन जहां तक विकास का सवाल है तो राज्य में दस प्रतिशत ही विकास किया गया है और वह भी शहरी क्षेत्रों में। राज्य में 35 लाख परिवार गरीबी रेखा के नीचे हैं। राज्य में उद्योग तो लगे लेकिन ये उद्योग प्राथमिक उद्योग ही रहे। प्राथमिक उद्योग से मेरा तात्पर्य यह है कि कच्चे माल को सांचे में ढालने का ही काम किया गया है। उच्च तकनीक का कोई उद्योग राज्य में स्थापित नहीं किया जा सका है। अपने राज्य की तुलना में हरियाणा और पंजाब में कोई खनिज संपदा नहीं है, फिर भी इन राज्यों में उद्योगों की स्थिति छत्तीसगढ़ से ज्यादा अच्छी है। छत्तीसगढ़ का कच्चा माल बाहर जा रहा है, यह स्थिति राज्य के लिए हानिकारक है। <br />
<b style="color: magenta;">छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा कहा जाता है पर कृषि के लिए कुछ नहीं किया गया है। मैं इंडिया टूडे के एक सर्वे का उल्लेख करना चाहूंगा जिसमें देश के राज्यों में छत्तीसगढ़ को कृषि में 19वें स्थान पर रखा गया है। इसी तरह से अधोसंरचना में 19वां, निवेश में छठा, स्वास्थ्य में तीसरा सुक्ष्म अर्थव्यवस्था में 19वां और संपूर्ण विकास के मामले में देश में 16वें स्थान में रखा गया है। यह सर्वे भी साबित करता है कि राज्य में विकास नहीं हो सका है। जो 10 प्रतिशत विकास हुआ है, वह अमीरों का हुआ है। </b><br />
मेरा ऐसा मानना है कि भाजपा विकास के सही मायने समझ ही नहीं सकी। भाजपा को कृषि, लघु उद्योग, हस्तशिल्प पर जोर देना था ताकि गांवों में रहने वाली 75 प्रतिशत आबादी का विकास होता। ऐसा क्यूं नहीं हुआ यह एक चिंता का विषय है। जिस तरह से राज्य में उद्योग आ रहे हैं और खनिज संपदा का दोहन कर रहे हैं उससे राज्य आने वाले 40-50 सालों में खोखला हो जाएगा। सरकार ने दो रुपए किलो चावल दिया, यह अच्छी बात है, लेकिन इससे आर्थिक विकास कहां हुआ? सरकार को गरीबी रेखा में जीवन यापन करने वालों को इस रेखा से बाहर करने की दिशा में काम करना था। <br />
<b style="color: red;">मैं अंत में अक्टूबर 2000 में मप्र के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को लिए गए अपने एक पत्र का उल्लेख करना चाहूंगा जिसमें मैंने उन्हें लिखा था कि आपके पास तो बालाघाट का एक लांजी ही नक्सल प्रभावित क्षेत्र है, लेकिन छत्तीसगढ़ में बहुत ज्यादा क्षेत्र नक्सल प्रभावित है, अगर नक्सली क्षेत्र में सही विकास नहीं हुआ तो छत्तीसगढ़ नक्सलगढ़ हो जाएगा, आज लगता है कि मेरी यह भविष्यवाणी सच साबित हो गई है। </b><br />
</div></div>राजकुमार ग्वालानीhttp://www.blogger.com/profile/08102718491295871717noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-906208060476674822.post-53552845540673058052011-11-05T22:23:00.000+05:302011-11-05T22:23:14.412+05:30मीडिया कब पहचानेगा अपनी औकात<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: justify;">कहने को तो मीडिया को देश का चौथा स्तंभ कहा जाता है, लेकिन हमें नहीं लगता कि मीडिया वास्तव में देश का चौथा स्तंभ है। अगर वास्तव में इसको चौथा स्तंभ माना जाता तो इस स्तंभ के शिल्पकारों की हालत छुट भईये नेताओं से तो कम से कम ज्यादा होती। ऐसा हम हवा में नहीं कह रहे हैं। इस चौथे स्तंभ में काम करते हमें भी दो दशक हो रहे हैं और इन सालों में हमने तो यही जाना है कि वास्तव में मीडिया ने अब तक अपनी सही औकात को नहीं पहचाना है। हमें बहुत अफसोस होता जब मीडिया से जुड़े लोगों को हम छोटे से पुलिस वालों के सामने असहाय पाते हैं। <br />
जब-जब देश में या किसी भी राज्य में कहीं भी किसी बड़े नेता या मंत्री की कोई सभा या कोई भी छोटा-बड़ा कार्यक्रम होता है तो उस समय मालूम होती है मीडिया की असली औकात। ऐसे कार्यक्रमों में सभा स्थल तक सभी नेता और मंत्रियों के वाहन तो जाते ही हैं, साथ ही इनके चमचों और छोटे-मोटे नेताओं को भी रोकने की हिम्मत सुरक्षा व्यवस्था में लगे पुलिस वाले नहीं दिखा पाते हैं। लेकिन मीडिया की बात आती है तो मीडिया कर्मियों को सभा स्थल के काफी दूर (कई बार तो एक किलो मीटर तक) रोक दिया जाता है और कहा जाता है कि अपने वाहन कहीं भी रखे और पैदल जाएं। ऐसे समय में हमें बहुत गुस्सा भी आता है और मीडिया कर्मियों की बेबसी पर तरस भी आता है। अब बेचारे मीडिया कर्मी को अपनी नौकरी करनी है उसे पुलिस वाले एक किलो मीटर क्या चार किलो मीटर भी दूर रोककर पैदल जाने कहेंगे तो जाना पड़ेगा। जाना इसलिए पड़ेगा क्योंकि पापी पेट का सवाल है। अगर आप सभा की रिपोर्टिंग करके नहीं जाएंगे तो अपनी नौकरी से हाथ भी धो सकते हैं। <br />
यह परंपरा आज से नहीं बल्कि बरसों से चली आ रही है और इससे लड़ना कोई नहीं चाहता है। अक्सर हम किसी कार्यक्रम में जाते हैं तो वाहन को दूर रखने को लेकर कई बार पुलिस वालों से बहस हो जाती है, कई बार वाहन अंदर ले जाने की इजाजत मिल जाती है तो कई बार मजबूरी में वाहन काफी दूर रखना पड़ता है। लेकिन हमें कम से कम इस बात की संतुष्टि है कि हम विरोध तो करते हैं, लेकिन ज्यादातर मीडिया कर्मी विरोध ही नहीं करते हैं। संभवत: उनको लगता है कि विरोध करने का फायदा नहीं है। लेकिन हमें लगता है कि उनका ऐसा सोचना गलत है। अगर मीडिया कर्मी एक हो जाए तो एक दिन ऐसा जरूर आएगा जब उनको सफलता मिलेगी। <br />
क्यों कर मीडिया कर्मियों के वाहन भी वहां तक नहीं जाने चाहिए जहां तक नेता-मंत्रियों या अन्य छुटभईये नेताओं के जाता हैं। क्या मीडिया कर्मियों की औकात उन छुट भईये नेताओं जितनी भी नहीं है तो सिर्फ नेताओं की चमचागिरी करते हैं। हम जानते हैं कि किसी भी कार्यक्रम का बहिष्कार करना मीडिया कर्मियों के बस में नहीं है क्योंकि आज के प्रतिस्पर्धा वाले दौर में यह इसलिए संभव नहीं है क्योंकि कोई न कोई तो कार्यक्रम को कवर कर ही लेगा। जो लोग बहिष्कार करने की हिम्मत दिखाएंगे उनको अपने संस्थानों के क्रोध का सामना करना पड़ेगा, संभव है किसी की नौकरी भी चली जाए, शायद यही वजह है कि लोग ऐसा साहस नहीं करते हैं। <br />
हम बताना चाहते हैं कि अगर मीडिया कर्मी हिम्मत करते हैं तो उनको सफलता मिल सकती है। ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि हमने ऐसा कई बार किया है और सफलता भी मिली है। हम बता दें कि छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह छत्तीसगढ़ ओलंपिक संघ के अध्यक्ष भी हैं। दो बार ओलंपिक संघ की बैठक में मीडिया को बैठक से दूर रखा गया तो हम लोगों ने इस बैठक का बहिष्कार किया। जब यह बात मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह तक पहुंची तो वे खुद हम लोगों तक न सिर्फ आए बल्कि उन्होंने छमा भी मांगी। <br />
हमारे कहने का मतलब यह है कि अक्सर ऐसा होता है कि ऊपरी स्तर पर तो कुछ जानकारी नहीं होती है और नीचे वाले अफसर अपनी मर्जी से कोई भी फैसला कर लेते हैं। जब तक अपनी बात को ऊपर तक नहीं पहुंचाया जाएगा तो कैसे मालूम होगा कि क्या हो रहा है। इसी के साथ एक बात हम और कहना चाहते हैं कि आज मीडिया के कारण ही नेता और मंत्री हैं। ऐसा कौन सा नेता और मंत्री होगा जो मीडिया की सुर्खियों में नहीं रहना चाहता है। जब उनको इस बात का अहसास कराया जाएगा कि मीडिया को सम्मान देने पर ही कोई कार्यक्रम कवर होगा तो हमें नहीं लगता है कि मीडिया की बात नहीं मानी जाएगी। बस जरूरत है मीडिया को अपनी ताकत और औकात को पहचाने की। जिस दिन हम मीडिया कर्मी अपनी ताकत और औकात को समझ जाएंगे, उस दिन एक नए युग की शुरुआत होगी। मीडिया कर्मियों को सम्मान दिलाने की दिशा में मीडिया से जुड़े संस्थान को भी अपने संस्थानों के कर्मियों का साथ देना होगा। <br />
हमें एक घटना याद है जो यह बताती है कि मीडिया की ताकत क्या है। मप्र के समय रायपुर के रेलवे स्टेशन में एक घटना में पुलिस की लाठियों से कई मीडिया कर्मी घायल हो गए थे। ऐसे में रायपुर के सभी अखबारों ने यह फैसला किया था कि सरकार की कोई भी खबर प्रकाशित नहीं की जाएगी। इस फैसले का असर यह हुआ कि उस समय मप्र के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को 24 घंटे के अंदर रायपुर आना पड़ा और घटना के लिए उन्होंने न सिर्फ छमा मांगी बल्कि घायल हुए हर मीडिया कर्मी के घर जाकर उनसे मिले और उनको मुआवजा दिया गया। यह एक उदाहरण बताता है कि वास्तव में मीडिया चाहे तो सरकार को झुका सकता है, लेकिन ऐसा किया नहीं जाता है। <br />
</div></div>राजकुमार ग्वालानीhttp://www.blogger.com/profile/08102718491295871717noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-906208060476674822.post-84108348679750155082011-10-26T13:14:00.000+05:302011-10-26T13:14:56.270+05:30रहे न किसी की झोली खाली- ऐसी हो सबकी दीवाली<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhE5V84sDoP1oThSY3w9DCA34SbpErL5Ym5RvZtweDyNET2HNJPis5xpRA1XfVTd1acT4VoL8JkLlju8jxw2yggbagAbDdh4CUewJrVoO3swabekZWejh7Yh5BCXEKzKG8ErpdQSYEsQEU/s1600/diwali-greetings-9.gif" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="234" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhE5V84sDoP1oThSY3w9DCA34SbpErL5Ym5RvZtweDyNET2HNJPis5xpRA1XfVTd1acT4VoL8JkLlju8jxw2yggbagAbDdh4CUewJrVoO3swabekZWejh7Yh5BCXEKzKG8ErpdQSYEsQEU/s320/diwali-greetings-9.gif" width="320" /></a></div><div style="text-align: center;"><b>आज है दीपों का पर्व दीवाली<br />
हर आंगन में दीप चले<br />
हर घर में हो खुशहाली<br />
सब मिलकर मनाए<br />
भाई चारे से दीवाली<br />
रहे न किसी की झोली खाली<br />
ऐसी हो सबकी दीवाली<br />
हिन्दु, मुस्लिम, सिख, ईसाई<br />
जब सब हैं हम भाई-भाई<br />
तो फिर काहे करते हैं लड़ाई<br />
दीवाली है सबके लिए खुशिया लाई<br />
आओ सब मिलकर खाए मिठाई<br />
और भेद-भाव की मिटाए खाई <br />
<br />
</b></div></div>राजकुमार ग्वालानीhttp://www.blogger.com/profile/08102718491295871717noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-906208060476674822.post-61910002407066144052011-10-25T08:49:00.002+05:302011-10-25T08:49:50.816+05:30प्रेस क्लब रायपुर चुनाव: जीतने वालों को बधाई<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: justify;">प्रेस क्लब रायपुर के चुनाव इस बात ऐतिहासिक हुए। पहली बार बहुत अच्छे तरीके से चुनाव का संचालन हाई पॉवर कमेटी के सदस्यों दैनिक तरूण छत्तीसगढ़ के संपादक कौशल किशोर मिश्रा, हरिभूमि के प्रबंध संपादक डॉ. हिमांशु द्विवेदी, दैनिक नई दुनिया के स्थानीय संपादक रवि भोई के साथ पन्नालाल गौतम और शैलेष पांडे ने करवाए। इस चुनाव में दो पैनलों के बीच ही मुकाबला हुआ। इसमें अध्यक्ष पद के लिए बृजेश चौबे ने समरेन्द्र शर्मा को 28 मतों से, महासचिव पद के लिए विनय शर्मा ने चंदन साहू को 28 मतों से, उपाध्यक्ष पद के लिए केके शर्मा ने राजेश मिश्रा को 6 मतों से, संयुक्त सचिव पद के लिए दो उम्मीदवार कमलेश गोगिया और विकास शर्मा जीते। कोषाध्यक्ष पद के लिए सबसे ज्यादा 139 मत प्राप्त करके सुकांत राजपूत ने अजय सक्सेना को सबसे ज्यादा 42 मतों से पराजित किया। <br />
इस चुनाव में कमलेश गोगिया की जीत प्रदेश के खेल पत्रकारों के साथ खेल बिरादरी के लिए सुखद रही। नामांकन के एक दिन पहले ही कमलेश गोगिया को हम लोगों ने चुनाव लड़ने तैयार किया था। ऐसे में उनका जीतना इस बात का परिचायक है कि प्रेस क्लब के चुनाव में साफ छवि को प्राथमिकता मिली है। <br />
कमलेश गोगिया छत्तीसगढ़ खेल पत्रकार संघ के महासचिव भी हैं। उनकी जीत पर छत्तीसगढ़ खेल पत्रकार संघ के मुख्य संरक्षक होने के नाते हम (राजकुमार ग्वालानी) उनको बधाई देते हैं। इसी के साथ खेल पत्रकार संघ के अन्य सदस्यों मुख्य संरक्षक अनिल पुसदकर, सुशील अग्रवाल, चंदन साहू, शंकर चन्द्राकर, आनंदव्रत शुक्ला, मंयक ठाकुर, प्रवीण सिंह, सुधीर उपाध्याय, सुरेन्द्र शुक्ला, विकास चौबे सहित सभी सदस्यों की तरफ बधाई है। इसी के साथ हम सभी जीतने वाले प्रत्याशियों को भी बधाई देते हैं और उम्मीद करते हैं कि अब प्रेस क्लब रायपुर में बहुत कुछ नया और अच्छा होगा। <br />
</div></div>राजकुमार ग्वालानीhttp://www.blogger.com/profile/08102718491295871717noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-906208060476674822.post-77662292277784656592011-10-22T08:55:00.002+05:302011-10-22T08:55:45.537+05:30जनचेतना नहीं जनआक्रोश यात्रा<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: justify;">भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण अडवानी की जनचेतना यात्रा जिस मकसद से पार्टी ने निकाली है, वह मकसद तो पूरा होता नहीं दिख रहा है, लेकिन इस यात्रा से जनआक्रोश जरूर बढ़ रहा है। यह यात्रा जहां भी जा रही है, वहां आम जन इतने ज्यादा परेशान हो रहे हैं कि हर किसी से मुंह से भाजपा के लिए अपशब्द ही निकल रहे हैं। ऐसे में यह तय है कि भाजपा ने इस यात्रा से अपने लिए फायदा नहीं बल्कि नुकसान किया है। यह तय है कि यात्रा से परेशान देश का जनतंत्र कभी नहीं चाहेगा कि उनको परेशान करने वाली पार्टी सत्ता में आए। इस यात्रा में एक और अहम बात यह है कि अडवानी जी की यह कैसी यात्रा है जिसमें रथ पहले आता है और वे विमान से आते हैं। <br />
अडवानी की यात्रा जब छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में आई तो यहां भी वही नजारा देखने को मिला जैसा नजारा देश के अन्य हिस्सों में देखने को मिला था। इस यात्रा के कारण दीपावली की तैयारी में लगे लोगों को सबसे ज्यादा परेशानी का सामना करना पड़ा। यात्रा के कारण सारे बाजार इस तरह से सील हो गए कि लोगों की बाजार तक पहुंचने में हालात खराब हो गई। बहुतो को तो बाजार जाने की बजाए घर वापास जाना ज्यादा उचित लगा। <br />
अब सोचने वाली बात यह है कि जो भाजपा देश की जनता में जनचेतना जगाने के लिए यात्रा कर रही है, उस यात्रा से लोग हलाकान और परेशान हो रहे हैं। यह तय है कि अडवानी की यात्रा से लोगों में जनचेतना तो आई है, लेकिन जिस तरह की जनचेतना है वह भाजपा के लिए ही घातक है। आज अडवानी की यात्रा जहां भी गई है, वहां के लोगों से इसके बारे में पूछेंगे तो पहले तो हर किसी के भी मुंह से अपशब्द ही सुनने को मिलेंगे। इस यात्रा ने लोगों को इस बात के लिए जरूर जागरूक कर दिया है कि ऐसी पार्टी को कभी सत्ता में मत लाना जो आम जनों का ख्याल नहीं रखती है। वैसे तो किसी भी पार्टी को जनता से सरोकार नहीं है, लेकिन कम से कम ऐसी यात्रा और पार्टियों तो नहीं करती हैं। <br />
अब इसका जवाब किसके पास है कि अडवानी की यात्रा से किसका भला हुआ है। हमारे विचार से तो न तो इससे पार्टी का भला हुआ है और न ही आमजनों का। अगर वास्तव में किसी का भला हुआ है तो वो वे अधिकारी हैं जिनको अडवानी की यात्रा के कारण सड़कें बनाने का काम मिला या इसी तरह का कोई काम दिया गया। इन कामों की आड़ में खुलकर भ्रष्टाचार हुआ। अपने छत्तीसगढ़ में ही अडवानी की यात्रा के लिए 20 करोड़ से ज्यादा की सड़कें बनाई गर्इं। अब यह बात सभी जानते हैं कि 20 करोड़ में से कितने की सड़कें बनीं होंगी। सड़कों के बनाने में भ्रष्टाचार तो होना ही था। वैसे अडवानी की रथ यात्रा पर भ्रष्टाचार का साया तो पहले से ही है। <br />
मप्र में इस यात्रा के समय मीडिया को पैसे बांटने की बात सामने आई। वैसे ऐसा होना कोई नई बात नहीं है। पता नहीं वह कौन का मुर्ख पत्रकार (ऐसा वे भाजपा नेता और वे पत्रकार सोच रहे होंगे जिनको पैसे मिले) था जिसने इस बात का खुलासा कर दिया। भगवान ऐसे ईमानदार लोग पैदा क्यों करते हैं, यही भ्रष्टाचारी सोच रहे होंगे। लेकिन पाप का घड़ा तो एक न एक दिन फुटता ही है। बहरहाल इतना तय है कि अडवानी की यात्रा भाजपा के लिए घातक साबित होगी। अडवानी जी के साथ भाजपा को इस बात का जवाब देना चाहिए कि यात्रा में रथ अलग और अडवानी जी अलग कैसे चल रहे हैं। क्यों कर रथ सड़क मार्ग से आता है और अपने नेता जी विमान से आते हैं। वास्तव में जनचेतना जगानी है और अगर दम है तो बिना सुरक्षा के सड़क मार्ग से यात्रा करें। अगर आप वास्तव में जनता के चहेते हैं तो कोई आपको नुकसान नहीं पहुंचेगा लेकिन आप अगर जनता के हितैषी नहीं है तो नुकसान उठाने के लिए तैयार रहें। <br />
</div></div>राजकुमार ग्वालानीhttp://www.blogger.com/profile/08102718491295871717noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-906208060476674822.post-48024175292888079782011-10-16T08:45:00.000+05:302011-10-16T08:45:26.682+05:30किसी को क्यों नहीं होता भ्रष्टाचार पर अफसोस<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: center;"><b>हमें तो जरूर दिखती है अच्छाई और सच्चाई <br />
क्योंकि हम नहीं खाते मुफ्त की दुध-मलाई <br />
हमें नहीं जकड़ सका है भ्रष्टाचार का कसाई <br />
उठो, जागो, देखों और सोचो भाई <br />
अगर हमने अब भी नहीं खोलीं आंखें <br />
तो निगल जाएगा देश को भ्रष्टाचार का कसाई <br />
क्यों सोए हैं न जाने अब तक अपने देश के लोग <br />
किसी को क्यों नहीं होता भ्रष्टाचार पर अफसोस<br />
</b></div></div>राजकुमार ग्वालानीhttp://www.blogger.com/profile/08102718491295871717noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-906208060476674822.post-82400193683903076242011-10-14T09:10:00.002+05:302011-10-14T09:10:28.092+05:30छत्तीसगढ़ के स्वर्ण सपूतों को सलाम<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">अपने छत्तीसगढ़ के एक और लाड़ले सपूत जगदीश विश्वकर्मा ने दक्षिण अफ्रीका में तिरंगा फहराने का काम किया है। रूस्तम सारंग के बाद जगदीश ने भी कामनवेल्थ भारोत्तोलन में स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रच दिया। 17 साल की उम्र में स्वर्ण जीतने वाले वे पहले खिलाड़ी हैं। इन दोनों खिलाड़ियों की जीत ने बता दिया है कि छत्तीसगढ़ के खिलाड़ियों से अब ओलंपिक के पदक दूर नहीं हैं। यह बात तय है कि अब छत्तीसगढ़ के यही खिलाड़ी ओलंपिक में भी जरूर स्वर्ण जीतेंगे और प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की घोषणा के अनुरूप दो करोड़ की राशि पाने के हकदार होंगे। </div>राजकुमार ग्वालानीhttp://www.blogger.com/profile/08102718491295871717noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-906208060476674822.post-80188105924619580712011-10-04T09:36:00.000+05:302011-10-04T09:36:01.828+05:30क्यों बदले तुम्हारे खयालात<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: center;"><b>छुट गया उनका साथ<br />
अब नहीं है हाथों में हाथ<br />
नहीं करते वो हमसे बात<br />
कटती नहीं अब तो रात<br />
काश एक बार हो जाए मुलाकात<br />
पूछे उनसे क्यों बदले तुम्हारे खयालात<br />
</b></div></div>राजकुमार ग्वालानीhttp://www.blogger.com/profile/08102718491295871717noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-906208060476674822.post-10845291677229825192011-10-02T09:09:00.002+05:302011-10-02T09:09:44.407+05:30महात्मा गांधी से क्या लेना-देना<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: justify;">आज गांधी जयंती है, इस अवसर पर हम एक बार फिर से याद दिलाना चाहते हैं कि भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के दर्शन करने का मन आज के युवाओं में है ही नहीं। यह बात बिना वजह नहीं कही जा रही है। कम से कम इस बात का दावा छत्तीसगढ़ के संदर्भ में तो जरूर किया जा सकता है। बाकी राज्यों के बारे में तो हम कोई दावा नहीं कर सकते हैं, लेकिन हमें लगता है कि बाकी राज्यों की तस्वीर छत्तीसगढ़ से जुदा नहीं होगी। आज महात्मा गांधी का प्रसंग इसलिए निकालना पड़ा है क्योंकि आज महात्मा गांधी की जयंती है और हमें याद है कि हमारे एक मित्र दर्शन शास्त्र का एक पेपर गांधी दर्शन देने गए थे। जब वे पेपर देने गए तो उनको मालूम हुआ कि वे गांधी दर्शन विषय लेने वाले एक मात्र छात्र हैं। अब यह अपने राष्ट्रपिता का दुर्भाग्य है कि उनके गांधी दर्शन को पढऩे और उसकी परीक्षा देने वाले परीक्षार्थी मिलते ही नहीं हैं। गांधी जी को लेकर बड़ी-बड़ी बातें करने वालों की अपने देश में कमी नहीं है, लेकिन जब उनके बताएं रास्ते पर चलने की बात होती है को कोई आगे नहीं आता है। कुछ समय पहले जब एक फिल्म मुन्नाभाई एमबीबीएस आई थी तो इस फिल्म के बाद युवाओं ने गांधीगिरी करके मीडिया की सुर्खियां बनने का जरूर काम किया था।<br />
<br />
हमारे एक मित्र हैं सीएल यादव.. नहीं.. नहीं उनका पूरा नाम लिखना उचित रहेगा क्योंकि उनके नाम से भी मालूम होता है कि वे वास्तव में पुराने जमाने के हैं और उनकी रूचि महात्मा गांधी में है। उनका पूरा नाम है छेदू लाल यादव। नाम पुराना है, आज के जमाने में ऐसे नाम नहीं रखे जाते हैं। हमारे यादव जी रायपुर की नागरिक सहकारी बैंक की अश्वनी नगर शाखा में शाखा प्रबंधक हैं। बैंक की नौकरी करने के साथ ही उनकी रूचि अब तक पढ़ाई में है। उनके बच्चों की शादी हो गई है लेकिन उन्होंने पढ़ाई से नाता नहीं तोड़ा है। पिछले साल जहां उन्होंने पत्रकारिता की परीक्षा दी थी, वहीं इस बार उन्होंने दर्शन शास्त्र पढऩे का मन बनाया। यही नहीं उन्होंने एक विषय के रूप में गांधी दर्शन को भी चुना। लेकिन तब उनको मालूम नहीं था कि वे जब परीक्षा देने जाएंगे तो उनको परीक्षा हाल में अकेले बैठना पड़ेगा। जब वे परीक्षा देने के लिए विश्व विद्यालय गए तो उनके इंतजार में सभी थे। दोपहर तीन बजे का पेपर था। उनको विवि के स्टाफ ने बताया कि उनके लिए ही आज विवि का परीक्षा हाल खोला गया और 20 लोगों का स्टाफ काम पर है। उन्होंने परीक्षा दी और वहां के स्टाफ के साथ बातें भी कीं। यादव संभवत: पहले परीक्षार्थी रहे हैं जिनको विवि के स्टाफ ने अपने साथ दो बार चाय भी पिलाई।<br />
<br />
आज एक यादव जी के कारण यह बात खुलकर सामने आई है कि वास्तव में अपने देश में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की कितनी कदर की जाती है। इसमें कोई दो मत नहीं है कि राष्ट्रपिता से आज की युवा पीढ़ी को कोई मतलब नहीं रह गया है। युवा पीढ़ी की बात ही क्या उस पीढ़ी के जन्मादाताओं का भी गांधी जी से ज्यादा सरोकार नहीं है। एक बार जब कॉलेज के शिक्षाविदों से पूछा गया कि महात्मा गांधी की मां का नाम क्या था। तो एक एक प्रोफेसर ने काफी झिझकते हुए उनका नाम बताया पुतलीबाई। यह नाम बिलकुल सही है।<br />
<br />
एक तरफ जहां कॉलेज के प्रोफेसर नाम नहीं बता पाए थे, वहीं अचानक एक दिन हमने अपने घर में जब इस बात का जिक्र किया तो हमें उस समय काफी आश्चर्य हुआ जब हमारी छठी क्लास में पढऩे वाली बिटिया स्वप्निल ने तपाक से कहा कि महात्मा गांधी की मां का नाम पुतलीबाई था। हमने उससे पूछा कि तुमको कैसे मालूम तो उसने बताया कि उनसे महात्मा गांधी के निबंध में पढ़ा है। उसने हमें यह निबंध भी दिखाया। वह निबंध देखकर हमें इसलिए खुशी हुई क्योंकि वह अंग्रेजी में था। हमें लगा कि चलो कम से कम इंग्लिश मीडियम में पढऩे वाले बच्चों को तो महात्मा गांधी के बारे में जानकारी मिल रही है। यह एक अच्छा संकेत हो सकता है। लेकिन दूसरी तरफ हमारी युवा पीढ़ी जरूर गांधी दर्शन से परहेज किए हुए हैं। हां अगर गांधी जी के नाम को भुनाने के लिए गांधीगिरी करने की बारी आती है तो मीडिया में स्थान पाने के लिए जरूर युवा गांधीगिरी करने से परहेज नहीं करते हैं। एक बार हमने अपने ब्लाग में भी गांधी की मां का नाम पूछा था हमें इस बात की खुशी है ब्लाग बिरादरी के काफी लोग उनका नाम जानते हैं। <br />
</div></div>राजकुमार ग्वालानीhttp://www.blogger.com/profile/08102718491295871717noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-906208060476674822.post-39369300152588159942011-10-01T07:48:00.000+05:302011-10-01T07:48:02.496+05:30काम पढ़ाना, शौक निशाना लगाना<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">पॉलीटेक्निक में लेक्चरर के पद पर काम करने वाली सुमी गुहा का शौक निशाना लगाना है और उनके इस शौक ने उनको दूसरी बार मावलंकर में खेलने की पात्रता भी दिला दी है। अपने पति आलोक गुहा की प्रेरणा से निशानेबाजी में आई, सुमी गुहा के दोनों बच्चे भी अच्छे निशानेबाज हैं। यह गुहा परिवार माना में राज्य निशानेबाजी में अपने जौहार दिखा रहा है। <br />
माना में चल रही राज्य निशानेबाजी के स्पोर्ट्स पिस्टल वर्ग में 245 अंकों के साथ स्वर्ण पदक जीतने के साथ सुमी गुहा ने 16 अक्टूबर से मावंलकर में होने वाली राष्ट्रीय स्पर्धा के पात्रता चक्र के लिए टिकट कटा लिया है। श्रीमती गुहा बताती हैं कि उनको तीन साल हो गए हैं राज्य स्पर्धा में खेलते हुए। पहले साल तो उनके हाथ सफलता नहीं लगी, लेकिन दूसरे साल उन्होंने एयर पिस्टल के साथ स्पोर्ट्स पिस्टल में रजत पदक जीते। 2010 के इस साल में उन्होंने एयर पिस्टल में मावलंकर जाने की भी पात्रता प्राप्त की। मावंलकर में वह राष्ट्रीय चैंपियनशिप में खेलने की पात्रता प्राप्त नहीं सकीं। लेकिन उनको इस बात की खुशी है कि उनको वहां तक जाने का मौका मिला। इस बार उनको स्पोर्ट्स पिस्टल में जाने का मौका मिला है। वैसे वह एयर पिस्टल में भी मावलंकर जाने का प्रयास करेंगी। इस वर्ग के मुकाबले अभी बचे हैं। <br />
सुमी गुहा बताती हैं कि उनके परिवार में सबसे पहले निशानेबाजी उनके पति आलोक गुहा जो कि माइनिंग में काम, करते थे, इसके बाद उन्होंने और दोनों बच्चों जिसमें प्रथम वर्ष में पढ़ रही अनुषा गुहा और पीजी कर रहे आयुष गुहा शामिल हैं ने निशानेबाजी प्रारंभ की। उनकी पुत्री दिल्ली में पढ़ती हैं, लेकिन राज्य स्पर्धा में खेलने वह यहां आ रही हैं। एक सवाल के जवाब में सुमी गुहा कहती हैं कि निशानेबाजी में सफलता के लिए निरंतर अभ्यास जरूरी है और इसके लिए उन्होंने घर में छोटी सी रेंज बना रखी है। वह कहती हैं कि एयर और स्पोर्ट्स पिस्टल के लिए छोटी की रेंज की ही जरूरत होती है इसलिए घर में अभ्यास संभव है। उन्होंने बताया कि 80-80 हजार की दो विश्व स्तरीय पिस्टल खरीदी है। इस बार उनको मावलंकर में अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद है। उन्होंने बताया कि मैंने यहां 245 अंक बनाएं हैं जबकि मावलंकर में 262 अंक बनाने पर ही राष्ट्रीय स्पर्धा में खेलने की पात्रता मिलेगी। अभी समय है और अभ्यास करने से मैं उस लक्ष्य तक पहुंच सकती हूं। <br />
</div>राजकुमार ग्वालानीhttp://www.blogger.com/profile/08102718491295871717noreply@blogger.com0